औधा

औधा

कुछ सालों से भाग रहा था।
काम मैं मेरा और औधा होता।

घर से काम करते लगा की
कम्बख्त मैं भी एक पौधा होता।

तो आ जाती।
रोज प्यार से ही देखती।
चूमती।
नजर उतारती।

सुबह शाम पानी पिलाती।
करीब आके हाथ घुमाती।

कोसती ना कभी अपने भाग्य को।
उल्टा सहेलियों को बुला बुला के दिखाती।

तारीफ करती जो भी काम।
काटे हो या फूल-ए-जाम।

जो रंग दिखाऊं
वो छा लेती।
रंग बदलती छिपकली ना कहती।

फोन मैं जादा मेरी तसवीरे मिलती।
मन मैं ही नहीं स्टेटस मैं भी रखती।

बारिश से पहले ही लिपट जाती।
एक जगह से दूसरी जगह नेती।

तो दोस्तों,
कुछ सालों से भाग रहा था।
काम मैं मेरा और औधा होता।
घर से काम करते लगा की
कम्बख्त मैं भी एक पौधा होता।
तो बीवी के मन में मेरा भी एक औधा होता।
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