सुकून

सुकून

बहुत बहे अश्क
इस मोहब्बत की जंग में
पर सुकुन उसी
रुके समय में मिला
जिसके अश्क थे
हमारे लिए बेहे 

तुमसे प्यार था या बस जूनून 
कभी अंत तक पहुंचू वो क्षितिज भी नहीं मिला 
तुम्हे भी इस विवाद में खिंच लेते 
कभी दावत का सुझाव नहीं मिला 

उस रुके समय में रोक लेते हमें 
कह देते एक बार के याद आएगी हमारी 
ये जरुरत आदत बन गयी है तुम्हारी 
अश्क गिराए थे बादमें 
तो उसी रुके पल में बहा देते 
वो कह देते तेरी जुबानी 

जंग न होती फिर मोहोब्बत की 
और आज भी सुकून 
उसी रुके समय में मिलता है 
जिसके अश्क थे हमारे लिए बहे 

आज भी याद है, तुमने पहना हुआ हर एक रंग 
कभी बयान कर सके वो मक़ाम नहीं मिला 

कभी इशारा नहीं मिला 
कभी तुम्हारा वक़्त नहीं मिला 
खत लिखना जरुरी था 
कभी सही कागज नहीं मिला 
कभी सही मसला नहीं मिला 
पता तो याद था 
कभी दिल चिर के लिखूं 
तकदीर के कलम को 
वो दवात नहीं मिला 

तुम ही टकरा जाते राह में 
मुलाकात का बहाना ढूंढ लेते 
कुछ नहीं तो दोस्तों से अपना हाल बता देते 
हमारा आपसे लगाव पूछ लेते 
दरबदर सोच को बेक़रार करने से अच्छा 
बेसबरी का बयां करने हम ही को बुला लेते 
तो पढ़ लेते निगाहें हमारी भी 
लगता जैसे मन को एक आइना लगा लेते 

तो जंग ना होती फिर मोहोब्बत की 
और आज भी रूह को सुकून उसी 
रुके समय में मिलता है 
जिसके अश्क थे हमारे लिए बहे 


बहोत बहे अश्क 
इस मोहोब्बत की जंग में 
लेकिन रूह को सुकून उसी 
रुके समय में मिला 
जिसके अश्क थे 
हमारे लिए बहे 

- शशांक. 

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